काफ़िर
मैं काफ़िर था,
फिर गैर, फिर असमाजिक तत्व, फिर आतंकी
उससे भी दिल नहीं भरा
तो लिबरल, कम्युनिस्ट, टुकड़े – फुकरे गैंग बना
मैं यह सब इसीलिए था क्योंकि मैं फ़ासिस्ट नहीं था,
क्योंकि मुझे लड़ना था,
मेरे मुल्क के लोगों के हक़ में
मेरे हक़ की लड़ाई का नाम उसने राजद्रोह रख दिया
और जंग ?
जंग का नाम राष्ट्रप्रेम
और इश्क़ ?
इश्क जिहादी हो गया
और कलम ?
गोली की नोक पर खड़ा व्यक्ति कलम
और मैं ?
मैं तो उन मर्दो से मोहब्बत में था,
तमाम उम्र से जिन्हें भी थे मर्द पसंद
मैं तो पैदाइश काफ़िर था।
~ शैली मिश्रा
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