अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस:- हिन्दी साहित्य में नारी विमर्श एंवम भारतीय लेखिकाओं की प्रशस्ति

“स्त्रियों की अवस्था को सुधारे बिना जगत के कल्याण की कोई सम्भावना नहीं है। पक्षी के लिए एक पंख से उड़ना सम्भव नहीं है।”                                              

विवेकानंद

वैदिक काल में नारी को पूजा करने और शिक्षा ग्रहण करने जैसे विभिन्न अधिकार  प्राप्त थे। परंतु भारतीय सामाज में मौजूद धार्मिक विषमताएं,निरक्षरता और अंधविश्वासों के कारण नारीयो को कई बार उपहास का भी सामना करना पड़ा। भारत हमेशा से ही पितृसत्तात्मकता के अधीन रहा है जिसका उल्लेख अनेको लेखको ने अपने साहित्य में किया है। नारी विमर्श हमेशा से ही स्वाधीनता के बाद की परिकल्पना रही है। मुंशी प्रेमचंद हो या महादेवी वर्मा सभी ने अपनी कृति के माध्यम से नारी जीवन का वर्णन किया है । वर्तमान में सालो से शोषण का सामना करते हुए सामाजिक दासता से उपर उठ कर स्वछच्छंद जीवन की ओर अग्रसर हो रही हैं।

हिन्दी साहित्य में नारी – विमर्श क्या है:-

‘‘स्त्री की स्थिति अधीनता की है। स्त्री सदियों से ठगी गई है और यदि उसने कुछ स्वतंत्रता हासिल की है तो बस उतनी ही जितनी पुरूष ने अपनी सुविधा के लिए उसे देनी चाही। यह त्रासदी उस आधे भाग की है, जिसे आधी आबादी कहा जाता है।“

-सीमोन द बोउआर

यह एक ऐसा साहित्य होता है जिसमें नारी जीवन की विभिन्न समस्याओं का वर्णन किया जाता है। हमेशा से ही हिन्दी क़िताबो में स्त्री विमर्श का ज़िक्र होता आ रहा है जिसमें नारी के जीवन में आने वाली सभी  समस्यओं के बारे में लिखा गया है। जब हम हिन्दी साहित्य में स्त्री-विमर्श की बात करते हैं तो इसका जन्म छायावाद काल से माना जाता है।

छाय़ावाद काल से हुआ हिन्दी साहित्य में नारी विमर्श का आंरभ:-

बताया जाता है छाय़ावाद काल से हिन्दी साहित्य में नारी विमर्श की शुरुआत हुई थी । महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य में छाय़ावादी युग के चार मुख्य स्तम्भों में से एक हैं उन की कविताओं में नारी वेदना और नारी सशक्तिकरण के कई रंग देखने को मिलते हैं। उन्होने अपनी  कृति “श्रृंखला की कड़िया” में  स्त्री सशक्तिकरण को  बड़ी सुन्दरता के साथ चित्रित किया है, जिसमें नारी-जागरण की बात की गई है ।

हिंन्दी साहित्य में नारी का योगदान :-

सेंवा सदन, प्रतिज्ञा, प्रेमाश्रम, जैसे उपन्यास में प्रेमचंद ने नारी समस्या के बारे में  लिखा है। बस इन्ही की तरह अब तक कई पुरूष लेखकों ने भी नारी समस्या के विषय में अपने साहित्य का सृजन किया, पर जब बात स्वयं महिला लेखिकाओं की आती है तब वे आप बीती घटनाओं को भली – भाती लिखना जानती हैं। उषा प्रियम्वदा, कृष्णा सोबती, मन्नू भण्डारी एवं शिवानी आदि लेखिकाओं ने नारी मन की भावनाओं को संजीदगी के साथ लिखना शुरू किया । वर्तमान में बहुत सी महिला लेखिकाएं हिंदी साहित्य में अपना योगदान दे रही हैं । हिंदी साहित्य में महिलाओं की भूमिका को नज़रअदाज़ नहीं किया जा सकता । मीराबाई, अमृता प्रीतम, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, जैसी महिला कवयित्रियों और लेखिकाओं की रचनाएँ लोगों को पंसद हैं

उदाहरण :-

  • अमृता प्रीतम– उपन्यासकार और कवयित्री जिन्होंने हिंदी और पंजाबी दोनों भाषाओं में लिखा है । जब मन को छू लेने वाली कविता या शायरी की बात हो तो वर्तमान में अमृता प्रीतम के प्रशंसक युवा वर्ग से लेकर बुजुर्ग हैं । अपनी कहानी पिंजर में उन्होने विभाजन के दौर में महिलाओं की स्थिति को लिखा है । अमृता प्रीतम, पहली पंजाबी महिला कवि के मानी जाती हैं।
  • मन्नू भंडारी– एक सुप्रसिद्ध कहानीकार जिसने अपने बचपन में ही अपनी आजादी की सीमा तय कर ली थीं। हिन्दी साहित्य के प्रति प्रेम उन्हें विरासत में मिली क्योंकी उनके पिता सुख सम्पतराय भी एक लेखक थे। 1971 में उन्होने आपका बंटी नामक एक उपन्यास लिखा जिसमें बताया कि माता पिता के अलग होने से एक बच्चा कितना टूट जाता है और उस बच्चे के मन मे चल रहीं उधेड़बुन को लिखा है।1982 में उनकी एक और उपन्यास आई जिसका नाम था महाभोज जिसमें भ्रष्टाचार और  दलितों के साथ हुए शोषण के बारे में बताया गया।
  • महादेवी वर्मा– हिंदी साहित्य के छायावादी युग की सबसे प्रमुख साहित्यकारों में से एक महादेवी वर्मा हैं। हिंदी की प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक महादेवी वर्मा खड़ी बोली हिंदी में कोमल शब्दावली का उपयोग करती थीं। महादेवी वर्मा, की प्रमुख रचनाओ के नाम हैं,आत्मिका, ,संधिनी, परिक्रमा,गीतपर्व,दीपगीत, स्मारिका, नीलांबरा आदि।

 वर्तमान में महिला लेखिकाओं की स्थिती :-

  • झुम्पा लाहिड़ी-  एक भारतीय अमेरिकी लेखिका हैं। झुम्पा लाहिड़ी का नाम लघु कथा में उत्कृष्टता के लिए 2017 पीएएन / मालामुद अवॉर्ड के प्राप्तकर्ता के रूप में घोषित किया गया। लाहिड़ी के प्रथम लघु कथा संग्रह, इंटरप्रेटर ऑफ़ मैलडीज़ (1999) को 2000 में उपन्यास के पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया और उनके पहले उपन्यास द नेमसेक (2003) पर आधारित उसी नाम की एक फिल्म भी बनाई गयी।
  • अरुंधति राय- सुज़ेना अरुंधति राय अंग्रजी भाषा की लेखिका और समाज सेवी हैं । “द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स” के लिये बुकर पुरस्कार प्राप्त अरुंधति राय ने लेखन के अलावा नर्मदा बचाओ आंदोलन सहित भारत के दूसरे जनांदोलनों में भी हिस्सा लिया है।

एक समय ऐसा था जब सिर्फ पुरूष लेखकों का अधिकार था, परन्तु अब तस्वीर थोड़ी बदली हुई नज़र आती है। महिला लेखन पर हंसी उड़ाया जाता था। परन्तु अब नारी – विमर्श की बात इसलिए अधिक कहीं जाती है क्योंकि आठवें बदलते समय के साथ महिला लेखिकाओं की सख्या बढ़ गई है। वर्तमान में नारी तिरस्कार और बहिष्कार का डर मन से हटा कर लेखन के माध्यम से अपने विचारो की अभिव्यक्ति कर रही हैं।   

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