कलम : ग़ुलाम भी आज़ाद भी

कलम पर शायरी
वक़्त बदलता रहा और वक़्त के साथ लोगों के विचार भी. कभी लोगों को एकता की डोर से बांधने का विचार, कभी इंक़लाब लाने का तो कभी जनता पर ज़ुल्म कर रही हुक़ूमत के खिलाफ.  हर सदी में उस सदी के कलमकारों का एक मात्र सहारा उनकी कलम बनी। जिसने कभी तुलसी दास के हाथों में रहकर राम को घर-घर तक पहुंचाया, वहीं जब वो कलम मिर्ज़ा ग़ालिब के पास आई तो दुनिया ने वो अंदाज़-ए-बयान देखा जिसकी आज कोई कल्पना भी नहीं कर सकता, और वो वही कलम थी जिसने जब सआदात हसन मंटो के घर दस्तक दी तो मंटो ने अपनी आईना दिखाती हुई रचनाओं से झूठी शान-ओ-शौकत के नक़ाब पहने लोगों के चेहरे बेनकाब किये। जिस कलम ने सर उठाके आज़ादी की हवा में सांस भी ली और ग़ुलामी की जंज़ीरों में अपने कई दिन भी गुज़ारे लेकिन उसकी चमक न तब कम थी न आज कम है।
आज शायरी कविता आदि के संग्रह में हम कलम की तारीफ और आज़ादी और गुलामी की हकीकत पर लिखीं गई अलग-अलग शायरों की रचनाओं को आपके सामने लेकर आये हैं। चलिए शुरू करते हैं  शमशीर-ए-सुख़न पर यानि कलम पर लिखी कुछ रचनाओं का सिलसिला -ं

कलम शब्द पर  शायरी

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मेरे जज़्बातों से इस कदर वाकिफ हैं मेरी कलम,
मैं इश्क भी लिखना चाहूँ तो इक़लाब लिखा जाता हैं।
~ भगत सिंह
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फ़लक पे भोर की दुल्हन यूँ सज के आई है ।
ये दिन उगा है या सूरज के घर सगाई है ।
अभी भी आते हैं आँसू मेरी कहानी में,
कलम में शुक्र-ए- खुदा है कि ‘रौशनाई’ है ।
~ कुमार विश्वास
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यहां ख़ुशबुओं की रिफ़ाक़ते न तुझे मिलीं न मुझे मिलीं,
वो चमन के जिसपे ग़ुरूर था न तेरा हुआ न मेरा हुआ ।
वो जो ख़्वाब थे मेरे ज़हन में न मैं कह सका न मैं लिख सका,
के ज़बां मिली तो कटी हुई के कलम मिला तो बिका हुआ ।
~ इक़बाल अशहर
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पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं 
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम आज उनकी जय बोल ।
~ रामधारी सिंह दिनकर
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वही ताज है वही तक़त है वही ज़हर है वही जाम है ।
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बूतों का निज़ाम है ।
 
बढ़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आंच तुझपे न आएगी,
ये ज़बाँ किसी ने ख़रीद ली ये कलम किसी का ग़ुलाम है ।
~ बशीर बद्र
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सारी दुनिया मे कलमकारों की वक़त गिर जाए ।
मैं कलम रख दूं तो अल्फ़ाज़ की सेहत गिर जाए ।
 
मुंकशिफ जल्दी से होते ही नही हैं हम लोग,
वर्ना हम हाथ उठाले तो हुक़ूमत गिर जाए ।
~ मुनव्वर राना
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जो बात कहते डरते हैं सब तू वो बात लिख ।
इतनी अंधेरी थी न कभी पहले रात लिख ।
 
जिनसे कसीदे लिखे थे वो फेंक दे कलम,
फिर खून-ए-दिल से सच्चे कलम की शिफ़ात लिख ।
 
जो रोज़ नामों में कहीं पाती नही जग़ह,
जो रोज़ हर जग़ह की है वो वारदात लिख ।
~ जावेद अख्तर
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बच्चों की फ़ीस उनकी किताबें कलम दवात,
मेरी गरीब आंखों में स्कूल चुभ गया।
~ मुनव्वर राना
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इश्क का होना भी लाजमी है शायरी के लिये,
कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी ग़ालिब होता।
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ऐ मेरी कलम इतना सा एहसान कर दे
केह ना पाई जो ज़बान वो बयान कर दे ।
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JMC साहित्य के कॉलम ‘शब्द शायरी’ में आज कलम शब्द पर शायरियों का संग्रह आपने पढ़ा। उम्मीद है कि इस संग्रह से आपकी खोज पूरी हुई होगी। JMC साहित्य के लेख, संग्रह आदि में सुधार हेतु अपने महत्वपूर्ण सुझाव जरूर दें।

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