जहां मज़हब होता है, जहां अलग-अलग मान्यताएं होती हैं, वहाँ होते है त्यौहार, त्यौहार जो आपसी प्रेम और भाईचारे का संदेश लेके आते हैं। फिर वो चाहे ईद की मिठास हो या दीवाली की रौनक। हर त्यौहार घर के दरवाजों पर खुशियों की दस्तक देने आता है। अगर बात करें, हिज़री कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाने वाला त्यौहार, जिसे हम ईद कहते हैं, जो शिर-खुरमा, खजूर और कई मिठाइयों में अपनी मिठास को समेट के लाता है जो इस बार भी आया है लेकिन आज, दरवाजों पर खुशियों की दस्तक़ की जगह, देहलीज़ पर एक सन्नाटा पसरा हुआ नजर आता है जो मानो चीख़-चीख़ कर ये कहे रहा हो कि अब तुम्हारे सभी त्यौहारों की रंगत जा चुकी है,जो अब कभी वापस लौटके नही आने वाली। लेकिन इसी के बीच कहीं दूर से एक उम्मीद नज़र आती है जो बताती है कि अकीदतमंदों अपनी अक़ीदत पर, अपनी प्रार्थनाओं पर भरोसा करो। वो ईश्वर, वो खुदा, वो भगवान मौजूद है। जो सब देख रहा है, जो सब ठीक करेगा।
ख़ैर इस वक़्त हालात बहुत नाज़ुक है और इन्हींं हालातों को बखूबी बयान करती हैं रचनाकारों की रचनाएं जो ईद मुबारक़ भी देती हैं और एसे माहौल में फासला रखने की हिदायत भी। तो चलिए शुरू करते हैं सिलसिला इस बार की ईद पर शायरों के कलाम का –