अख़बार शब्द पर शायरी
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खींचों न कमानो को न तलवार निकालो,
जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो ।
~ अक़बर इलाहाबादी
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जो दिल को है ख़बर कहींं मिलती नहींं खबर,
हर सुबह एक अज़ाब है अख़बार देखना ।
~ उबैदुल्लाह अलीम
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कौन पढ़ता है यहां खोल के दिल की किताब,
अब तो चेहरे को ही अख़बार किए जाना है ।
~ राजेश रेड्डी
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कोई कॉलम नहींं है हादसों पर,
बचाकर आज का अख़बार रखना ।
~ अब्दुस्समद “तपिश”
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सुर्खियां खून में डूबी हैं सब अख़बार की,
आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए ।
~ मखमूर सईदी
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बन के इक हादसा बाज़ार में आ जाएगा ।
जो नहीं होगा वो अख़बार में आ जाएगा ।
चोर उचक्कों की करो कद्र की मालूम नहीं,
कौन कब कौन-सी सरकार में आ जाएगा ।
~ राहत इंदौरी
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वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है ।
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है ।
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से,
यहां ख़त भी ज़रा सी देर में अख़बार होता है ।
~ कुमार विश्वास
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एक-दो दिन मे वो इकरार कहाँ आएगा ।
हर सुबह एक ही अख़बार कहाँ आएगा ।
आज जो बांधा है इन में तो बहल जायेंगे,
रोज इन बाहों का त्योहार कहाँ आएगा ।
~ कुमार विश्वास
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मुफ़्त की कोई चीज बाज़ार में नहीं मिलती ।
किसान के मरने की सुर्खियां अख़बार में नहीं मिलती ।
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बंद लिफाफा थी जो अब इश्तिहार हो गयी ।
मेरी मासूम सी मोहब्बत अखबार हो गयी ।
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वहीं किस्से वही कहानियाँ मिलेंगी हमेशा मुझमें,
मैं कोई अखबार नहीं जो रोज़ बदल जांऊ।
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