हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर अंकित कुमार द्वारा लिखी गई सुंदर कविता
कलम भी हूं औऱ कलमकार भी हूं
खबरों के छपने का आधार भी हूं,
मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूं
इसे बदलने की एक तलबगार भी हूं,
दिवानी ही नहीं हूं, दिमागदार भी हूं
झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं,
कभी जो भीड़ में सुमार होती भी हूं
तो कभी उनसे जुदा विचार भी हूं,
सिर्फ इश्तिहार नहीं, समाचार भी हूं
समाजिक मुद्दों पर करती रार भी हूं,
नौकरी के चलते थोड़ा लाचार भी हूं
पर राष्ट्र के प्रति सदा जिम्मेदार भी हूं,
लोगों की नजरों में मैं चाटुकार भी हूं
पर लोकतंत्र की सच्चे पहरेदार भी हूं.