रहती नहीं कोई भी कमी इंतज़ाम में,
महिमा अनन्त है जो लिखूं इस पैगाम में
होता हूँ परेशां मैं घिरुं मुश्किलों से जब,
हिम्मत खड़ी मिले मुझे पापा के नाम में
है प्यार इतना कि ये समंदर भी है कहाँ
उनके हृदय के सामने अम्बर भी है कहाँ
एहसान तुझपे पापा के इतने हैं कि दीपक,
चुकता नही कर पायेगा कोई भी दाम में
हिम्मत खड़ी मिले मुझे पापा के नाम में
दुनिया के मोह जाल से डरता था मैं कभी
अजनबियों के संसार से डरता था मैं कभी
जब से रखा पापा ने मेरे सिर पे हाथ को,
डरता नही हूँ अब कभी कोई भी काम में,
हिम्मत खड़ी मिले मुझे पापा के नाम में
~ दीपक मेहरा
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