एक प्यार का नगमा है..
मौजो की रवानी है..
ज़िंदगी और कुछ भी नहीं
तेरी मेरी कहानी है…
1972 में आई फ़िल्म ‘शोर’ का यह गीत जिसे लता जी और मुकेश साहब की आवाज़ ने नवाज़ा और ये वही गीत था जिस गीत ने आज संगीत की दुनिया में हमे वो आवाज़ दी जो इस वक़्त लोगों के दिलों मे राज कर रही है। वो आवाज़ है महादेव की पावन भूमि उत्तराखंड के देहरादून से आए जुबिन नौटियाल की।
1989 की 14 जून को पहाड़ो की गोद में सुकून से रहने वाले उत्तराखंड के देहरादून में मौजूद जौनसार बावर के क्यारी गांव में जन्म हुआ उस आवाज़ का जिसे हमने जाना जुबिन नौटियाल के नाम से। इनके पिता राम शरण नौटियाल जो पेशे से राजनीति में थे और एक बिज़नेसमैन भी थे। वहीं इनकी माँ नीना नौटियाल होम-मेकर के साथ-साथ एक बिज़नेस वुमेन भी थी। बचपन से ही संगीत को अपने जीवन का एक हिस्सा बना चुके जुबिन को एक रोज़ उनके पिता ने उन्हें अपने पास बुलाया और अपनी गोद में बिठाकर उन्हें गाना सुनाया। वैसे तो उस वक़्त जुबिन की उम्र बहुत कम थी लेकिन वो कहते हैं ना प्रेरणा किसी उम्र की गुलाम नहीं होती है। उस रोज जुबिन ने अपने पिता से अपनी जिंदगी का पहला गाना सुना। जो था ‘शोर’ फ़िल्म का गीत ‘एक प्यार का नगमा है’ । इस गीत को सुनकर जुबिन ने संगीत की दुनिया में अपना पहला कदम रखा और उस दिन से शुरू हुआ बॉलीवुड म्यूजिक इंडस्ट्री को मिलने वाले एक नगमे का सफ़र।
बचपन से ही जुबिन की म्यूजिक को लेकर दीवानगी साफ नजर आ रही थी। गिटार, बांसुरी और हारमोनियम ऐसे तमाम तरह के इंस्ट्रुमेंट भी जुबिन बजाया करते। पहाड़ो की गोद में पले और बहती नदियों का संगीत सुनते हुए जुबिन ने एजुकेशन में भी संगीत को हमेशा ज्यादा महत्व दिया। अपनी स्कूल की पढ़ाई में उन्होंने सिंगिंग सब्जेक्ट को हमेशा साथ रखा। स्कूलिंग के दौरान जुबिन को उनकी म्यूजिक टीचर वंदना श्रीवास्तव ने संगीत की तालीम दी। जुबिन ओर उनके अच्छे-बुरे हर वक़्त का साथी उनका गिटार जिसे उन्होंने ‘वेदा’ नाम दिया था। लगातार देहरादून में मशहूर होते जा रहे थे। उनके दोस्त और उनको सुनने वाले मानो जैसे उनके दीवाने हो चुके थे।
2007 का वक़्त था। जुबिन की गायकी के लिए उन्हें मिल रहीं तालियों ने उन्हें और बड़े सपने दिखाना शुरू कर दिया जिन सपनों के चलते जुबिन ने कदम रखा सपनों के शहर मुम्बई में। पहाड़ो का सुकून छोड़ जुबिन मुम्बई की भाग-दौड़ में आ चुके थे। जहां उन्होंने ग्रेजुएशन के लिए मीठीबाई कॉलेज में एडमिशन लिया और म्यूजिक सब्जेक्ट लेकर पढ़ने लगे।
इन सब के बीच जुबिन काफी समय से म्यूजिक को अपनी ज़िंदगी बना चुके ए.आर. रहमान से मुलाकात करना चाहते थे। जिसके चलते उन्होंने अपने पिता के सोर्स से लेकर अपनी पुरी जान-पहचान लगा दी और आखिर 2007 में ही जुबिन की मुलाकात हुई यश राज स्टूडियो में ए.आर. रहमान से। जुबिन रहमान साहब के सामने पहुंचे और कहा मैं चाहता हूँ कि आप मेरा गाना सुनके बताए कि मैं कैसा गाता हूँ? फिर जुबिन ने गाना सुनाया और रहमान साहब ने गाना सुना और उसके बाद मानो जैसे ए.आर. रहमान को जुबिन नौटियाल में भविष्य का एक बड़ा प्लेबैक सिंगर नज़र आ गया हो। उन्होंने कहा कि तुम्हारी आवाज कुछ अलग हटके है अभी इसपर और काम करो अभी तुम 18 साल के हो 21 साल की उम्र में वापस आना तब तक जिनसे सिख रहे उनसे ही सीखो। जुबिन को उस दिन सिर्फ 5 मिनट का वक़्त मिला था लेकिन उस 5 मिनट की मुलाकात ने जुबिन को उनके कैरियर में एक सही डायरेक्शन दे दिया। जिसके बाद मीठीबाई कॉलेज में चल रही अपनी पढ़ाई को एक साल में ही छोड़ कर जुबिन देहरादून वापस आगए। देहरादून में अपनी कॉलेज की बाकी पढ़ाई को जारी रखा और अपनी टीचर ‘वंदना श्रीवास्तव’ से संगीत सीखना फिर शुरू कर दिया।
एक तरफ जुबिन घूमने के शौकीन थे वहीं दूसरी तरफ म्यूजिक का जुनून भी था। जो उन्हें बनारस ले गाया जहां जुबिन ने सेमी क्लासिकल की तालीम हासिल की। उनके गुरु छन्नूलाल मिश्रा से, इसके अलावा वेस्टर्न म्यूजिक को सीखने जुबिन चेन्नई पहुंचे और प्रसन्न सेम म्यूजिक स्कूल में वेस्टर्न म्यूजिक की तालीम हासिल की। इस दौरान 2011 में जुबिन एक्स फैक्टर उस समय के एक सिंगिंग रियलिटी शो के मंच तक पहुंचे हालांकि उस शो के जजों जुबिन की परफॉर्मेंस से ज्यादा खुश नही हुए। यह तक कि सोनू निगम ने उन्हें रिजेक्ट भी कर दिया लेकिन शो के नियम अनुसार बाकी दो जजेस के सिलेक्शन के बाद यह अगले राउंड में तो पहुंच गए लेकिन अगले राउंड में जुबिन को फिर रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। करीब 4 साल के इस सफर के बाद जुबिन 23 साल की उम्र में मुम्बई वापस लौटे। जहां म्यूजिक डायरेक्टर्स के चककर लगाने के अलावा जुबिन के पास और कोई रास्ता नहीं था। किसी गाने के रिकॉर्ड होने से पहले उस गाने को किसी दूसरे से गवाया जाता है जिसे ओरिजनल सिंगर सुनके उस गाने की धुन को समझता है उसे स्क्रेचीज़ कहते हैं और इन्ही स्क्रेचीज़ को जुबिन गाया करते थे। उस वक़्त जुबिन ने करीब 200 गानों के स्क्रेचीज़ गाए। आखिर उनकी मेहनत रंग लाई और स्क्रेसीज़ गाते-गाते जुबिन का इंतज़ार खत्म हुआ जब जुबिन के पास आया अक्षय कुमार की फ़िल्म द शौकीन का गाना मेहरबानी का स्क्रेच जिसे बाकी स्क्रेचीज़ की तरह ही उन्होंने गाया। जब ये स्क्रेच अक्षय कुमार के पास पहुंचा तो अक्षय बोले कि मुझे यह गाना इसी तरह और इसी वाॉइस में चाहिए। ये स्क्रेच जिसने गया है वही गाना गायेगा।
जहां एक तरफ अक्षय कुमार ने अपनी इक्षा जाहिर की तो वहीं दूसरी तरफ जुबिन नौटियाल की सालों की मेहनत सफल होने जा रही थी। जुबिन ने अपना पहला गाना मेहरबानी 2014 में रिकॉर्ड किया जो अभी रिलीज़ भी नही हुआ और जुबिन को उनका दूसरा गाना मिल गया। जो फ़िल्म सोनाली केबल का एक मुलाकात गाना था जिसे जुबिन ने गाया और वो रिलीज़ भी हो गया और इस तरह जुबिन का दूसरा गाना पहले रिलीज और पहला गाना बाद में।
हालांकि दोनों ही गानों को खूब पसंद किया गया लेकिन जुबिन नौटियाल को देश भर में पहचान दिलवाई फ़िल्म बजरंगी भाईजान के गाने कुछ तो बाता जिंदगी ने, इस गाने ने उन्हें अपकमिंग मेल वोकलिस्ट के लिए मिर्ची म्यूजिक अवार्ड भी दिलवाया और इसके बाद शुरू हुआ जुबिन नौटियाल का एक के बाद एक प्यार और ग़म से भरे गीतों का सफर, साथ ही शुरू हुआ जुबिन के फैंस का इंतज़ार उनके हर नए गाने के लिए।
जुबिन नौटियाल की सादगी और गायकी दोनों ने ही उनके फैंस के दिलों में घर कर लिया था। बिना किसी बॉलीवुड बैकग्राउंड होने के बाद भी जुबिन ने अपनी मेहनत से वो मुकाम हासिल किया जो आज के समय मे हासिल करना किसी के लिए आसान नहीं है। मशहूर शायर अलामा इक़बाल साहब कहते थे कि
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा,
तेरे सामने आसमां और भी हैं।
जीवन में काफी रिजेक्शनस के बाद भी जुबिन का संगीत के प्रति कभी लगाव कम नहीं हुआ। इस समय जुबिन का ऐसा कोई गाना नही है जो शुपरहिट न होता हो, यहां जुबिन अपना गाना रिलीज़ करते हैं और वही अगले ही पल वो गाना लाखों करोड़ों दिलों की जान बन जाता है। कभी जुबिन के गानों में प्यार का लहज़ा नज़र आता है तो कभी ग़म में डूबे हुए आशिक़ की गुहार तो कभी उनके संस्कार और उनकी भक्ति नज़र आती है उनके भजनों में, अब तक जो हुआ बहुत ख़ूबसूरत था। लेकिन अब म्यूजिक के भविष्य की बात करना बहुत जरूरी है और आज म्यूजिक के भविष्य का एक अंग है जुबिन नौटियाल।
अभी अपने पढ़ा सभी के चहेते सिंगर जुबिन नौटियाल की सम्पूर्ण जीवन को। उम्मीद है आपको यह कहानी पसंद आई हो और किसकी बायोग्राफी को आप पढ़ना चाहते हैं कमेंट के ज़रिए हमें बताए।