तस्वीर: दिखता हुआ सच

कभी हाथों से कागज़, दीवार, पत्थर आदि के चेहरे पर बनी पेंटिंग के रूप में, तो कभी आधुनिकता की कोख़ से जन्म लिए कैमरे से कैद किये गए उन पलों के रूप में जिनको हमने नाम दिया तस्वीर। उसने अपने अलग-अलग रूपों में कभी इतिहास, कभी वर्तमान, तो कभी अपनी कल्पनाओं से भविष्य की चाही-अनचाही सूरत को पेश किया। जिसने अपने आप को सच दिखाता हुआ आईना बनाया तो कभी इसी तस्वीर का सहारा लेकर लोगों ने दूसरों की आंखों में धूल झोंकते हुए खुद के झूठ को सच में तब्दील भी किया। लेकिन आखिर में जो सच था वो सामने आता रहा। तस्वीर ने हर युग में लोगों के शब्दों को बेहतर ढंग से पेश करने का काम किया। तस्वीर जिसकी सीरत थी मौन होकर भी हर बात को चींख-चींख कर कहना उसने अपनी उस सीरत को कभी नहीं खोया और तस्वीर की इसी सीरत को देखते हुए मुकव्विनों ने यानी रचनाकारों ने अपनी रचनाओं को रचा। जिम रचानाओं में से आज हम आपके लिए शायरों द्वारा लिखी  शायरियों को लेकर आए हैं। 

तस्वीर शब्द पर शायरी

 
जिसकी आवाज़ में सिलवट हो, निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़े जाते ।
 ~ गुलज़ार
____________________________
 
रंग, ख़ुश्बू और मौसम का बहाना हो गया
अपनी ही तस्वीर में चेहरा पुराना हो गया ।
 ~ ख़ालिद गनी
____________________________
 
रफ़्ता रफ़्ता सब तस्वीरें धुँदली होने लगती हैं
कितने चेहरे एक पुराने एल्बम में मर जाते हैं ।
 ~ ख़ुशबीर सिंह शाद
____________________________
 
लारियों से ज्यादा बहाव था तेरे हर एक लफ़्ज़ में,
मैं इशारा नही काट सकता तेरी बात क्या काटता ।
कोई भी तो नही जो मेरे भूखे रहने पर उदास हो,
जेल में तेरी तस्वीर होती तो हस कर सज़ा काटता ।
 ~ तहज़ीब हाफी
____________________________
 
तस्वीर के दो रुख़ हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ
इक नक़्श छुपाना है इक नक़्श दिखाना है ।
~ जिगर मुरादाबादी
____________________________
 
उसकी तस्वीरें हैं दिलकश तो होंगी,
जैसी दीवारें हैं वैसा साया है ।
एक मैं हूँ जो तेरे क़त्ल की कोशिश में था, 
एक तू है जो जेल में खाना लाया है ।
 ~ तहज़ीब हाफी
____________________________
 
यार तस्वीर में तन्हा हूँ मगर लोग मिले, 
कई तस्वीर से पहले कई तस्वीर के बाद ।
भेज देता हूँ मगर पहले बता दूँ तुझ को,
मुझसे मिलता नहीं कोई मेरी तस्वीर के बाद ।
 ~ उमैर नजमी
____________________________
 
कुछ पल के लिये खुलता है कैमरे का शटर,
और कैद हो जाते हैं हम ज़िंदगी भर के लिये ।
____________________________
 
मैं खींच नहीं पाया तस्वीर
झूठे बर्तन उठाते बचपन की
भीख मांगते युवक की,
रिक्शा खींचते बूढ़े की,
मैं खींच नहीं पाया तस्वीर ।
चेचक के दाग से
सड़कों के गाल पर पड़े गड्ढों की
मैं खींच नही पाया तस्वीर ।
रिश्वत के भार से गिरे पुल की
मैं नही चाहता था दुनिया देखे,
मेरे भारत की ऐसी तस्वीरों को
मगर कब तक छुपाया जा सकता है
चेहरे के इन दागों को ।
____________________________
 
गरीबी बेचारी गरीब रह गई,
तस्वीरें भूखों की हजारों कमा गई ।
____________________________

JMC साहित्य के कॉलोम हर शब्द पर शायरी में आज तस्वीर शब्द पर शायरियों का संग्रह अपने पढ़ा। उम्मीद है कि इस संग्रह से आपकी खोज पूरी हुई होगी। JMC साहित्य के लेख, संग्रह आदि में सुधार हेतु अपने महत्वपूर्ण सुझाव जरूर दें।

Leave a Comment

Want to crack UGC-NET Exam?

Courses out for Dec 2024 Exam.

Hurry up now.

Open chat
Ned help ?
Hello, welcome to “JMC Study Hub”. How can we assist you?