वक़्त बदलता रहा और वक़्त के साथ लोगों के विचार भी. कभी लोगों को एकता की डोर से बांधने का विचार, कभी इंक़लाब लाने का तो कभी जनता पर ज़ुल्म कर रही हुक़ूमत के खिलाफ. हर सदी में उस सदी के कलमकारों का एक मात्र सहारा उनकी कलम बनी। जिसने कभी तुलसी दास के हाथों में रहकर राम को घर-घर तक पहुंचाया, वहीं जब वो कलम मिर्ज़ा ग़ालिब के पास आई तो दुनिया ने वो अंदाज़-ए-बयान देखा जिसकी आज कोई कल्पना भी नहीं कर सकता, और वो वही कलम थी जिसने जब सआदात हसन मंटो के घर दस्तक दी तो मंटो ने अपनी आईना दिखाती हुई रचनाओं से झूठी शान-ओ-शौकत के नक़ाब पहने लोगों के चेहरे बेनकाब किये। जिस कलम ने सर उठाके आज़ादी की हवा में सांस भी ली और ग़ुलामी की जंज़ीरों में अपने कई दिन भी गुज़ारे लेकिन उसकी चमक न तब कम थी न आज कम है।
आज शायरी कविता आदि के संग्रह में हम कलम की तारीफ और आज़ादी और गुलामी की हकीकत पर लिखीं गई अलग-अलग शायरों की रचनाओं को आपके सामने लेकर आये हैं। चलिए शुरू करते हैं शमशीर-ए-सुख़न पर यानि कलम पर लिखी कुछ रचनाओं का सिलसिला -ं
कलम शब्द पर शायरी
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