कुमार विश्वास

कलम पर शायरी

कलम : ग़ुलाम भी आज़ाद भी

जिस कलम ने सर उठाके आज़ादी की हवा में सांस भी ली और ग़ुलामी की जंज़ीरों में अपने कई दिन भी गुज़ारे लेकिन उसकी चमक न तब कम थी न आज कम है।
आज शायरी कविता आदि के संग्रह हम कलम की तारीफ और आज़ादी और गुलामी की हकीकत पर लिखीं गई

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अख़बार पर शायरी

अख़बार : इंक़लाब से इश्तिहार का सफर

अलग अलग समय पर शायरों ने जहाँ एक तरफ अखबार पर अपना भरोसा जताया वहीं अखबार की बदलती सूरत को देख अपना आक्रोश भी दिखाया। आज अख़बार के इसी सफर को दिखिए अलग अलग वक़्त के शेयरों की रचनाओं में –

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