Home / JMC Sahitya / ईद: खुशियों का त्यौहार

ईद: खुशियों का त्यौहार

ईद पर शायरी
जहां मज़हब होता है, जहां अलग-अलग मान्यताएं होती हैं, वहाँ होते है त्यौहार, त्यौहार जो आपसी प्रेम और भाईचारे का संदेश लेके आते हैं। फिर वो चाहे ईद की मिठास हो या दीवाली की रौनक। हर त्यौहार घर के दरवाजों पर खुशियों की दस्तक देने आता है। अगर बात करें, हिज़री कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाने वाला त्यौहार, जिसे हम ईद कहते हैं, जो शिर-खुरमा, खजूर और कई मिठाइयों में अपनी मिठास को समेट के लाता है जो इस बार भी आया है लेकिन आज, दरवाजों पर खुशियों की दस्तक़ की जगह, देहलीज़ पर एक सन्नाटा पसरा हुआ नजर आता है जो मानो चीख़-चीख़ कर ये कहे रहा हो कि अब तुम्हारे सभी त्यौहारों की रंगत जा चुकी है,जो अब कभी वापस लौटके नही आने वाली। लेकिन इसी के बीच कहीं दूर से एक उम्मीद नज़र आती है जो बताती है कि अकीदतमंदों अपनी अक़ीदत पर, अपनी प्रार्थनाओं पर भरोसा करो। वो ईश्वर, वो खुदा, वो भगवान मौजूद है। जो सब देख रहा है, जो सब ठीक करेगा।
ख़ैर इस वक़्त हालात बहुत नाज़ुक है और इन्हींं हालातों को बखूबी बयान करती हैं रचनाकारों की रचनाएं जो ईद मुबारक़ भी देती हैं और एसे माहौल में फासला रखने की हिदायत भी। तो चलिए शुरू करते हैं सिलसिला इस बार की ईद पर शायरों के कलाम का –

ईद पर शायरों के कलाम 

_________________________
ग़मो से दर्द से ज़ख्मों से तलवारों से डरते हैं ।
मोहब्बत क्या करेंगे वो जो अंगारों से डरते हैं ।
 
दशहरा, ईद, बैसाखी, दिवाली अब भी आते हैं ।
मग़र अब हाल ये है लोग त्यौहारों से डरते हैं ।
~ मंज़र भोपाली
_________________________
तुझको मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी 
ईद अब के भी दबे पावँ गुज़र जाएगी ।
~ ज़फर इक़बाल
_________________________
ईद ख़ुशियों का दिन सही लेकिन
इक उदासी भी साथ लाती है
 
ज़ख़्म उभरते हैं जाने कब-कब के
जाने किस-किस की याद आती है
~ फ़रहात एहसास
_________________________
ऐ हवा तू ही उसे ईद-मुबारक कहियो,
और कहियो कि कोई याद किया करता है ।
~ त्रिपुरारि
_________________________
मुस्कुराओ की ईद हो जाए
गुनगुनाओ की ईद हो जाए ।
 
अपने छोटे-बड़ों की सब गलतियां,
भुल जाओ की ईद हो जाए ।
 
बे दिली से न यूं गले से लगो,
दिल मिलाओ की ईद हो जाए
 
जा के अपने बड़ों के क़दमों में,
सर झुकाओ की ईद हो जाए ।
~ हनीफ़ दानिश इंदौरी
_________________________
क़त्ल की सुन के ख़बर ईद मनाई मैंने
आज जिस से मुझे मिलना था गले मिल आया ।
~ दाग़ देहलवी
_________________________
ख़ुशी ये है कि मेरे घर से फ़ोन आया है
सितम ये है कि मुझे ख़ैरियत बताना है ।
 
नमाज़ ईद की पढ़ कर मैं ढूँढता ही रहा,
कहीं दिखे कोई अपना गले लगाना है ।
~ सईद सरोश आशिफ
_________________________
कहींंंंं है ईद की शादी कहीं मातम है मक़्तल में,
कोई क़ातिल से मिलता है कोई बिस्मिल से मिलता है ।
~ दाग़ देहलवी
_________________________
किसी विसाल की आहट, किसी उम्मीद का दिन
फ़िज़ा में घुलते हुए नग़मा-ऐ-सईद का दिन
 
अब इस से बढ़ के मुबारक भी वक़्त क्या होगा
तुम्हारी याद का मौसम है और ईद का दिन ।
_________________________
मिल के होती थी कभी ईद भी दिवाली भी,
अब ये हालत है कि डर-डर के गले मिलते हैं
_________________________
_________________________
माना कि आज “कोई उम्मीद भर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती” लेकिन फिर भी अपने अंदर एक उम्मीद को जगह दीजिये क्योंकि उम्मीद पर दुनिया कायम है। सब जल्द ही ठीक हो जायेगा और यह वक़्त ही तो है गुज़र जाएगा। JMC साहित्य की टीम आप सभी के लिए दुआ करती है और अपनी शुभकामनाएं देती है कि आप सबको ईद मुबारक हो…
ईद पर लिखे गए शायरों के विचारों का संग्रह और उन्हें प्रस्तुत करने का तरीका । उम्मीद है कि आपको पसंद आया होगा। अपने सुझाव हमें जरूर लिख कर भेजे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

About JMC Study Hub

JMC Study Hub is India’s first largest and dedicated learning platform of Journalism and Mass Communication. 

Email : support@jmcstudyhub.com

Latest Post
Interview

Subscribe to Our Newsletter

Quick Revision
FOLLOW US ON FACEBOOK
ईद पर शायरी
Scroll to Top