रेडियो प्रसारण भारत में स्वदेशी था, यह देश के कोने-कोने में कोई सन्देश पहूँचाने का एक बहुत बड़ा माध्यम था. इसके द्वारा देश के किसान विस्तृत रूप से खेती की जानकारी प्राप्त कर सकते थे, मौसम, देश – विदेश से जुड़ी बातें आसानी से देश के लोगों तक पहुंचा सकते थे. मास मीडिया के अन्य साधनों की बात करें तो समाचार, पत्रिका, फिल्मों को भारत पहुंचने में लंबा समय लगा लेकिन रेडियो प्रसारण लगभग उसी समय भारत में आया, जब पहला विश्व रेडियो प्रसारण हुआ था। Radio listening by farmer (Wide-reach) रेडियो का चलन वैसे तो बरसों पुराना है लेकिन भारत में, रेडियो प्रसारण का पहला प्रयास टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप द्वारा अगस्त 1921 में पोस्ट और टेलीग्राफ डिपार्टमेंट के सहयोग से किया गया था।टाइम्स ऑफ इंडिया रिकॉर्ड की रिकॉर्ड के अनुसार 20 अगस्त 1921 को इसकी इमारत की छत से एक प्रसारण प्रसारित किया गया था लेकिन प्रसारण के लिए पहला लाइसेंस 23 फरवरी, 1922 को ही दिया गया था।टाइम्स ऑफ इंडिया के इन प्रयासों के बाद, कलकत्ता, बॉम्बे, मद्रास और लाहौर में शौकिया रेडियो क्लबों द्वारा रेडियो प्रसारण शुरू किया गया था, हालांकि क्लबों ने अपने वेंचर शुरू करने से पहले ही, बॉम्बे में कई प्रयोगात्मक प्रसारण किए गए थे।रेडियो क्लब ऑफ बॉम्बे ने जून, 1923 में अपना पहला कार्यक्रम प्रसारित किया। समझने के प्रयास से इंडियन रेडियो ब्रॉडकॉस्टिंग अर्थात् भारतीय रेडियो प्रसारण को प्रगति और विकास के अनुसार अलग-अलग समय स्लॉट और विभिन्न चरण में विभाजित किया जा सकता है Phases of Radio पहला चरण- 1921-1927 पहला प्रसारण 20 अगस्त 1921 को बॉम्बे में हुआ और प्रसारण बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास और लाहौर के शौकिया रेडियो क्लबों द्वारा किया गया।मद्रास रेडियो क्लब ने 31 जुलाई, 1924 को एक 40 watt ट्रांसमीटर के साथ प्रसारण शुरू किया।बाद में, क्लब ने 200 watt ट्रांसमीटर के साथ प्रसारित करने लगा। लेकिन कुछ वित्तीय कठिनाइयों के कारण यह बंद हो गया। दूसरा चरण- 1927- 1931 वित्तीय कठिनाइयों ने रेडियो क्लबों को एक साथ आने के लिए मजबूर किया और उन्होंने 1927 में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड (IBC) का गठन किया।जुलाई और अगस्त, 1927 में बॉम्बे और कलकत्ता स्टेशनों का उद्घाटन किया गया।उस समय की भारत सरकार एंव इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड के बीच समझौते के तहत रेडियो प्रसारण प्रारंभ हुआ।1927 तक भारत में भी ढेरों रेडियो क्लबों की स्थापना हो चुकी थी।पहला रेडियो कार्यक्रम पत्रिका इंडिया रेडियो टाइम्स 15 जुलाई, 1927 को शुरू हुआ और इसका नाम बाद में बदलकर इंडिया लिसनर कर दिया गया। Indian Broadcasting House लेकिन इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी लिमिटेड (IBC) सरकार से लोन के बावजूद फाइनेंशियल फेल्यूर हो गई थी। यह कंपनी लिक्वीडेशन में चला गया और मार्च, 1930 में बंद हो गया।रेडियो-सेट डीलरों, प्रोग्रामरों और आम जनता के दबाव में, सरकार ने अप्रैल, 1930 में बॉम्बे और कलकत्ता स्टेशनों को अपने कब्जे में ले लिया। फिर इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस अर्थात् भारतीय प्रसारण सेवा का गठन किया गया।लेकिन वल्ड वाइड डिप्रेशन के दिन थे। सरकार को भी कई वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वैसे भी प्रसारण को लेकर लोग ज्यादा उत्साहित नहीं थे। इसलिए, सरकार ने 10 अक्टूबर 1930 को भारतीय प्रसारण सेवा को बंद करने का आदेश दिया। तीसरा चरण- 1931- 1936 प्रतिनिधियों और आंदोलन ने सरकार को 23 नवंबर, 1931 को आदेशों को वापिस लेने के लिए मजबूर किया। फिर सरकार ने रेडियो सेटों पर शुल्क दोगुना कर दिया। रिसिविंग सेट की संख्या, जो सभी आयात की गई थी, वो दो साल से भी कम समय में दोगुनी हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि लाइसेंस फीस से सरकार की आय में वृद्धि हुई। रेडियो सेट और उसके कंपोनेंट्स पर आयात शुल्क में वृद्धि ने सरकार के राजस्व को भी बढ़ाया।सरकार को मुनाफा होने पर दिल्ली में एक रेडियो स्टेशन शुरू करने का निर्णय लिया गया।सरकार ने उद्योग और श्रम विभाग के तहत इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस को स्थापित करने का निर्णय लिया।उसके बाद लियोनेल फील्डन को बीबीसी से आमंत्रित किया गया जो भारत में प्रसारण के पहले नियंत्रक बने । जैसा कि आज-कल ऑल इंडिया रेडियो में रेडियो चीफ्स को महानिदेशक कहा जाता है।लियोनेल फील्डन ने सरकार को प्रसारण की क्षमता का एहसास कराया साथ-ही-साथ फील्डन ने सेवाओं के लिए सरकार से अधिक धन आवंटित करने के लिए राजी किया।लियोनेल फील्डन एक दिलचस्प बात बताते हैं........ कि कैसे वे वायसराय को प्रसारण सेवा के लिए ऑल इंडिया रेडियो नाम को एडोप्ट करने के लिए राजी करते थे।उन्होंने अपनी किताब द नेचुरल बेंट में इस कहानी का वर्णन किया है। वे लिखते हैं - मुझे कभी भी ISBS यानि इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस शीर्षक पसंद नहीं आया, जो मुझे न केवल अजीब लगता था, बल्कि आधिकारिक रूप से भी कलंकित करता था। मैंने कहा कि शायद सभी भारतियों के लिए ब्रोडकॉस्टिंग शब्द का उपयोग करना कठिन है। चौथा चरण- 1936-1947 1936 में भारत में सरकारी ‘इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया। Akashvani फील्डन ने पूरे देश को कवर करने के लिए 1938 में शॉर्ट-वेव सेवा की शुरूआत की।उसके बाद ऑल इंडिया रेडियो लखनऊ स्टेशन 2 अप्रैल, 1938 को और मद्रास स्टेशन 16 जून को ऑन एयर हुआ। उसी वर्ष दिल्ली में एक्सटर्नल सर्विस डिविजन शुरू किया गया । ए. एस. बोखारी ने लियोनेल फील्डन से पहला भारतीय महानिदेशक बनने का कार्यभार संभाला। वह सभी युद्ध वर्षों के दौरान और विभाजन के बाद तक प्रमुख रहे।1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत होने पर भारत में भी रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर दिए गए और ट्रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दे दिए गए।इस बीच गांधी जी ने अंग्रेज़ों भारत छोडो का नारा दिया। गांधी जी समेत तमाम नेता 9 अगस्त 1942 को गिरफ़्तार कर लिए गए और प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई।नवंबर 1941 को सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो जर्मनी से भारतवासियों को संबोधित किया था और कहा था. “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।”नई दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट पर एक नया ब्रॉडकास्टिंग हाउस बनाया गया।3 जून, 1947 को भारत के वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन, पंडित जवाहरलाल नेहरू और मो अली जीना ने भारत के विभाजन पर ऐतिहासिक प्रसारण किया। Jawaharlal Nehru (Left), Lord Mountbatten (Center) and Md. Ali Jinnah (Right) 14-15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि में, नेहरू ने अपने प्रसिद्ध भाषण "ट्राइस्ट विद डेस्टिनी" का प्रसारण किया। यह ऑल इंडिया रेडियो के अभिलेखागार में आज भी संरक्षित है। पांचवा चरण- 1947- 1957 देश के विभाजन के बाद छह रेडियो स्टेशन जैसे बांबे, कलकत्ता, दिल्ली, तिरुचि, लखनऊ और मद्रास भारत के हिस्से में आए।जब बिखरी हुई रियासतें भारत का हिस्सा बन गईं, तो पांच और स्टेशनों जैसे हैदराबाद, औरंगाबाद, बड़ौदा, मैसूर और त्रिवेंद्रम को आकाशवाणी ने अपने कब्जे में ले लिया।1953 में लखनऊ से हिंदी में और नागपुर से मराठी में क्षेत्रीय समाचार बुलेटिन शुरू कर दिए गए थे।1953 में वार्ता का पहला राष्ट्रीय कार्यक्रम भी चल निकला।1955 में पहला रेडियो संगीत सम्मेलन प्रसारित किया गया था। उसी वर्ष सरदार पटेल मेमोरियल लेक्चर और रेडियो न्यूज़रील की शुरुआत हुई।पहली पंचवर्षीय योजना के अंत तक, रेडियो स्टेशनों की संख्या बढ़कर 26 हो गई थी।1953 से 1961 तक सूचना और प्रसारण मंत्री के पद पर रहे डॉ बी.वी. केसकर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए बहुत कुछ किया। उन्होंने प्रख्यात लेखकों, कवियों, संगीतकारों और नाटककारों को प्रोड्सयूर के रूप में कॉन्ट्रेक्ट पर लाया।दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) में प्रसारण के लिए बजट को पहली योजना के बजट के मुकाबले चार गुना बढ़ा दिया गया। छठा चरण- 1957- 1994 1957 में ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदलकर ‘आकाशवाणी’ रख दिया गया, जिसे प्रसारण और सूचना मंत्रालय देखने लगा। आकाशवाणी संस्कृत मूल का एक शब्द है जिसका अर्थ है "आकाशीय घोषणा" या "आकाश / स्वर्ग से आवाज़"।स्वतंत्रता के समय देश में सिर्फ 6 रेडियो स्टेशन हुआ करते थे, लेकिन 90 के दशक तक रेडियो का नेटवर्क पुरे देश में फ़ैल चूका था और 146 AM स्टेशन बन गए थे.ऑल इंडिया रेडियो अंग्रेजी, हिंदी के साथ-साथ कई क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं में कार्यक्रम प्रदान करता है।1967 के दौरान भारत में वाणिज्यिक रेडियो सेवाएं शुरू हुईं और यह पहल विविध भारती और वाणिज्यिक सेवा द्वारा की गई ।विविध भारती : विविध भारती, ऑल इंडिया रेडियो की सबसे अच्छी सेवाओं में से एक है. इसका नाम मोटे तौर पर ‘विविध भारतीय’ के रूप में अनुवादित है, और इसे व्यावसायिक प्रसारण सेवा भी कहा जाता है. भारत के कई बड़े शहरों में लोकप्रिय है. विविध भारती समाचर, फिल्म संगीत और कॉमेडी कार्यक्रमों सहित कई कार्यक्रमों की पेशकश करते हैं. यह प्रत्येक शहर के लिए विभिन्न मध्यम तरंग बैंड आवृत्तियों पर चल रहा है. सातवां चरण- 1994 और उसके बाद एफएम क्रांति - आकाशवाणी वर्तमान में 18 एफएम स्टीरियो चैनल संचालित करता है, जिसे आकाशवाणी एफएम रेनबो कहा जाता है, जो प्रस्तुति की एक ताज़ा शैली में शहरी दर्शकों को लक्षित करता है।चार और एफएम चैनल जिसे, AIR FM गोल्ड कहा जाता है। यह दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुंबई से मिश्रित समाचार और मनोरंजन कार्यक्रम प्रसारित करता है।AIR चरणबद्ध तरीके से एनालॉग से डिजिटल पर स्विच कर रहा है। अपनाई गई तकनीक डिजिटल रेडियो मोनॉयडल या डीआरएम है।सन् 1995 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि रेडियो तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं है। सन् 2002 में एन.डी.ए. सरकार ने शिक्षण संस्थानों को कैंपस रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति दी। उसके बाद 2006 में यूपीए सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन चलाने की अनुमति दी। परंतु इन रेडियो स्टेशनों से समाचार या सम-सामयिक विषयों पर चर्चा के प्रसारण पर पाबंदी है।यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साल 2014 से रेडियो के माध्यम से महिने के किसी एक रविवार को मन की बात (Mann Ki Baat) प्रोग्राम करते हैं, इस कार्यक्रम के माध्यम से भी लोगों को रेडियों से जुड़े रहने का मौका मिला है। निश्कर्ष भले ही आज मोबाइल, इन्टरनेट, टीवी, कंप्यूटर के युग में रेडियो बीते जमाने की बात हो गई है, लेकिन आज भी यह लोगों की जिंदगी का हिस्सा बना हुआ है, वहीं रेडियों की तमाम खासियत की वजह से और इसके शानदार इतिहास को याद रखने एवं रेडियो के खोते स्वाभिमान को फिर से जगाए रखने के लिए 13 फरवरी को वर्ल्ड रेडियो डे के रुप में मनाया जाता है।