भारत में टेलीविजन पत्रकारिता परिपक्व होने से पहले ही कुपोषित हो गया है। आप इसकी कल्पना नहीं कर सकते। आप उसे खिला-पिला कर बहुत हेल्दी बना लेंगे, ऐसा संभव नहीं है। विदेशी टीवी चैनल को देखिए, कितनी आसानी से अपनी बात रखते हैं। हमारे यहां एंकर शुरू होता है तो ऐसा लगता है कि मानो वह पूरे देश को बहरा मानकर चल रहा है कि जब तक हम जोर से नहीं बोलेंगे तब तक बहरे हमारी बात नहीं सुनेंगे।