आज हमारे सामने कई ऐसे उदाहरण है जहाँ महिलाओं ने समाज की रुढ़िवादिताओं पर चोट करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है । लेकिन कल्पना चावला, लता मंगेशकर , नूरजहां औऱ कमला हैरिस जैसी महिलाओं के उदाहरण होने के बाद भी , आज कोई लड़की घर की चौखट से एक कदम भी आगे बढ़ा ले, तब चार लोग और चार बातों के साथ- साथ उन्हें रास्ते में आने वाली बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है। एक समाचार-पत्र के सुविचार में पढ़ा था कि- ” रास्ते में आने वाली बधाये ही होतीं है, जो साहस बढ़ाती है, प्रतिभा निखारती है,और हमेशा लक्ष्य की ओर आगे बढ़ाती हैं। ठीक इसी बात को सच साबित करने का अभूतपूर्व कार्य किया है पाकिस्तान की मलाला युसुफ़ज़ई ने।
आख़िर कौन है मलाला ?
” मैं उस लड़की के रूप में, याद नहीं किया जाना चाहती, जिसे गोली मार दी गई थी ,मैं उस लड़की के रूप में याद किया जाना चाहती हूं, जिसने खड़े हो कर उसका, सामना किया। “
-मलाला युसुफ़ज़ई
ऐसा कहने वाली मलाला युसुफ़ज़ई का जन्म 12 जुलाई 1997 को पाकिस्तान के एक पश्तून परिवार में हुआ था । मलाला का जन्म स्थान मिंगोरा शहर ( पाकिस्तान) था। मलाला युसुफ़ज़ई को बाल अधिकारों और महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता हैं। वह बचपन से ही महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाते हुए नज़र आ रही हैं।
आख़िर क्यों हुई आतंकवादियो के हमले का शिकार?
15 वर्ष की आयु में लड़कियों की शिक्षा और शांति के लिए आवाज़ उठाने की सजा के रूप में, मलाला आतंकवादियों के हमले का शिकार बनी। यह बात थी सन् 9 अक्टूबर 2012 की जब स्कूल जा रही, मलाला युसुफ़ज़ई को तालीबानियों ने पख्तूनख्वा प्रांत के स्वात घाटी इलाके में, सिर पर गोली मार दी जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गई।
साहसी मलाला युसुफ़ज़ई की बहादुरी को देख कर संयुक्त राष्ट्र ने 12 जुलाई को “मलाला दिवस” के रूप में घोषित कर दिया । मलाला युसुफ़ज़ई सिर्फ यहाँ नहीं रुकी, मलाला के द्वारा ‘‘मलाला फंड” के नाम से एक ग़ैर लाभकारी संस्था की स्थापना की गई जो लड़कियों को स्कूल जाने में मदद करता है।
नोबल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसुफ़ज़ई-
मलाला ब्रिटेन से जब स्वस्थ होकर आई तब कई पुरुस्कर मलाला का इंतेज़ार कर रहे थे। जैसे अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार(2013),साख़ारफ़ (सखारोव) पुरस्कार (2013),
मैक्सिको का समानता पुरस्कार(2013),संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार सम्मान (2013), पाकिस्तान का राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार (2011) के अलावा वर्ष 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।
आज मलाला युसुफ़ज़ई किसी पहचान कि मोहताज़ नहीं है। लेकिन जिस उम्र में बच्चे खिलौने के लिए जि़द करते हुए नज़र आते है,उस उम्र में मलाला मानवधिकारों के लिए लड़ते हुए आ रही है । जो आज हम सभी के लिए प्रेरणाश्रोत है।
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