विडियो प्रोडक्शन में करियर कैसे बनाए- डॉ. संदीप

Interview- Dr. Sandeep Kumar

‘जेएमसी स्टडी हब ‘ ने मास कम्युनिकेशन क्षेत्र में अपने अनुभव व मीडिया उद्योग के वर्तमान परिदृश्य के बारे में अंतर्दृष्टि जानने के लिए डॉ. संदीप कुमार, सहायक प्रोफेसर, अमीटी विश्वविद्यालय के साथ बातचीत………


  • विडियो प्रोडक्शन में अपना कैरियर कैसे शुरू करें
  • वीडियो एडिटिंग / प्रोडक्शन सॉफ्टवेयर के साथ आपका अनुभव
  • मीडिया रिसर्च में चुनौतियाँ
  • एक अच्छा शोध पत्र बनाने के कुछ टिप्स
  • तकनीकी क्षेत्र के विशेषज्ञ होने के बावजूद शिक्षाविदों के क्षेत्र को चुनने के कारण

जिस प्रकार आपने वृत्तचित्र और फिल्मों के निर्माण में एक कैमरामैन, संपादक और पटकथा लेखक के रूप में कार्य किया है, तो कृपया मार्गदर्शन करे कि मॉस कम्यूनिकेशन के विद्यार्थी विडियो प्रोडक्शन में अपना कैरियर कैसे शुरू कर सकते हैं?

डॉ. संदीप– अगर कोई विडियो प्रोडक्शन में अपना कैरियर बनाना चाहता है तो यह सबसे आसान काम है लेकिन आसान उनके लिए जिन्हें कैमरे की समझ, स्क्रिप्ट की जानकरी हो साथ-साथ क्रीएटिव सोच रखते हो क्योंकि विडियो प्रोडक्शन एक सामूहिक कार्य होता है। इसमें क्रिएटिविटी काफी महत्व रखती है। इसके हर एक भाग में कैरियर बनाया जा सकता है। जैसे कैमरामैन के रूप में, स्क्रिप्ट राइटिंग में, डायरेक्शन में, लाइटिंग आदि में। लेकिन यह जरूरी है कि आप विडियो प्रोडक्शन के जिस फिल्ड में भी कैरियर बनाने की सोच रहे हैं उसके बारे में आपकों छोटी से लेकर बड़ी बातों की जानकारी हो। आज देश भर में अनेक विश्वविद्यालय है जो विडियो प्रोडक्शन में डिप्लोमा से लेकर रेगुलर कोर्स करवा रहे हैं, साथ ही अलग से भी जैसे डायरेक्शन, कैमरा एवं क्रीएटिव राइटिंग आदि के भी कोर्स हो रहे हैं। मेरा यह मानना है कि आप को विडियो प्रोड्क्सश में जाने से पहले आप कोई एक कोर्स किसी भी विश्वविद्यालय से कर ले ताकि आपको उस के बारे में मूलभूत जानकारी हो जाए। यह एक ऐसा फिल्ड है जहां आप रातों-रात स्टार बन सकते हैं अथवा अपको काफी संर्घष भी करना पड़ सकता है, अतः आपकों हर परिस्थिति के लिए मानसिक रूप से खुद को तैयार रखना होगा। मेरा यह मानना है कि पहले कोर्स करने के बाद किसी अच्छे प्रोडक्शन हाउस या किसी डायरेक्टर के साथ में इंटनशिप करनी चाहिए ताकि आपको मूलभूत चीजों की जानकारी हो जाए और आपने कोर्स में सीखा है उसके बारे में भी प्रैक्टिकल जानकारी हो जाए।

आपके पास वीडियो एडिटिंग में डिप्लोमा है और वीडियो एडिटर के रूप में टीएनएस एंटरटेनमेंट में चार साल कार्य किया है। तो, क्या आप हमें बता सकते हैं कि वीडियो एडिटिंग / प्रोडक्शन सॉफ्टवेयर के साथ आपका क्या अनुभव रहा है?

डॉ. संदीप– जी यह बिलकुल सहीं है कि मैनें दिल्ली में टीएनएस एंटरटेनमेंट के साथ विडियो एडिटर के रूप में चार साल काम किया। इस काम के दौरान मैंने बहुत सारे टीवी विज्ञापन, डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म, म्यूजिक एल्बम एवं फीचर फिल्मों की एडिटिंग की साथ ही ऑडियो डबिंग का काम भी किया। इसके लिए मैं एडिटिंग सॉफ्टवेयर के रूप में फाइलन कट प्रो, इनसाईट का प्रयोग करता था। आज मैं अपने छात्रों को इसके बारे में बताता रहता हूँ। सब यह सोचते हैं कि सबसे आसान काम एडिटिंग का ही है लेकिन ऐसा नहीं है देखिए मेरे मानना यह है कि कम्प्यूटर ऑपरेटर कोई भी दो चार कमांड जान कर बन सकता है लेकिन एक एडिटर बनना इतना आसान काम नहीं है, क्योंकि इसके लिए आपके पास क्रिएटिविटी होनी चाहिए, आपकों एडिटिंग के रूल का पता होना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि आपको हर प्रोडशक्न हाउस में एडिटिंग सॉफ्टवेयर के रूप में फाइलन कट प्रो इनसाईट मिले। आज इन्डस्ट्री में विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर प्रयोग में लाए जा रहे हैं। तब यह प्रश्न उठता है कि क्या हमें सारे सॉफ्टवेयरों की जानकारी होनी चाहिए? देखिए ऐसा नहीं है और न ही ऐसा संभव है कि हम एक साथ सारे सॉफ्टवेयरों की जानकारी रख ले। ऐसी परिस्थिती में हमें किसी एक सॉफ्टवेयर प्रयोग के बारे में पूरी जानकारी रखनी होगी। एडिटिंग एक क्रिएटिविटी का कार्य है, अगर आपके पास किसी एक सॉफ्टवेयर के प्रयोग की पूरी जानकारी है और आपके पास क्रिएटिविटी है तो आप किसी भी सॉफ्टवेयर पर काम कर सकते हैं। उस सॉफ्टवेयर को आप हप्ते भर में सिख लेगें। सारे सॉफ्टवेयर का काम एक जैसा ही होता है केवल कमांड और कीबोर्ड अलग-अलग होते हैं। मैनें भी अपनी शुरूआत पावर डाइरेक्टर नामक सॉफ्टवेयर से की थी फिर एडॉब प्रीमीयर प्रो उसके बाद इनसाइट और फिर फाइलन कट प्रो इनसाईट पर काम किया। कहने का मतलब यह है कि अगर आपके पास क्रिएटिव सोच है और आप किसी एक सॉफ्टवेयर के प्रयोग के बारे में पूरी तरह जानते हैं तो आप को अन्य सॉफ्टवेयरों को सिखने में ज्यादी परेशानी नहीं होगी।

आपने फिल्में, गीत, वृत्तचित्र, विज्ञापन फिल्में, कॉरपोरेट फिल्में आदि ये सभी निर्माण पंजाबी, भोजपुरी, मैथिली और हिंदी जैसे कई भाषाओं में किए। तो क्या आप उपरोक्त किसी भी निर्माण पर अपना सर्वश्रेष्ठ अनुभव साझा कर सकते हैं?

डॉ. संदीप– मैने बहुत सारे टीवी विज्ञापन, डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म, म्यूजिक एल्बम एवं फीचर फिल्मों की एडिटिंग पंजाबी, मैथिली, भोजपुरी एंव हिंदी भाषों में की है। सारी भाषाओं में काम करना अपने आप में एक नया अनुभव था क्योंकि मेरी मातृभाषा भोजपुरी एवं हिंदी है। इसलिए बाकी भाषाओं में काम करना आपने आप में एक नया अनुभव था। लेकिन फिर भी अगर सबसे अच्छे अनुभव की बात की जाए तो मैथिली भाषा के एक म्यूजिक एल्बम के सीरिज के साथ रहा जिससे मुझे न केवल यह पता चला कि मीडिया इन्डस्ट्री में सब्र सबसे बड़ी चीज होती है। मैनें मैथिली म्यूजिक एल्बम की एडिटिंग रात 8 बजे से शुरू की और सुबह 5 बजे उसे कम्पलीट की और सुबह डायरेक्टर आकर देखे और बोले इसमें बहुत सारी गलतियां हैं इसे डिलिट करे और मैं जैसा बोलता हूँ उस तरीके से करे। मैं आश्र्चर्य के साथ उसका चेहरा देखता रहा और सोचा पूरी मैंने जो मेहनत की वो बेकार हो गया, गुस्सा भी काफी आया। लेकिन क्या किया जा सकता था फिर मैंने सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक उनके साथ बैठ उनके अनुसार काम किया तो वह काफी खुश हो गए और मेरी काफी तारीफ भी की। लेकिन आप सोच सकते हैं कि सारी मेहनत आपकी कोई एक पल में बेकार कर दे तो आप पे क्या बितती है। लेकिन मेरे लिए यह एक ज्ञान था कि मीडिया इन्डस्ट्री में सब्र सबसे बड़ी चीज होती है। बाकी कुछ खास नहीं रहा, लेकिन मीडिया इन्डस्ट्री में काम करना भी अपने आप में एक चैलेंज होता है।  और अगर आप इस चैलेंज को स्वीकार कर सकते हैं तभी आप मीडिया इन्डस्ट्री में लम्बे समय तक टीक पायेगें।

“न्यू मीडिया, डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई है, यह पुस्तक पत्रकारिता और जनसंचार के छात्रों के लिए कैसे उपयोगी है?

डॉ. संदीप– मेरी एक संपादित पुस्तक है “न्यू मीडिया, डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन” पुस्तक 2019 में रूद्रा पब्लिकेशन, नई दिल्ली, द्वारा प्रकाशित किया गया था। मेरा यह मानना है कि यह पुस्तक मॉस कम्यूनिकेशन के छात्रों के लिए ही नहीं बल्कि उन सारे लोगों के लिए है जो न्यू मीडिया का उपयोग किसी न किसी रूप में करते हैं क्योंकि मेरा यह मानना है कि न्यू मीडिया का उपयोग करने वालों को यह पता होना चाहिए कि जिस न्यू मीडिया का उपयोग वे कर रहे हैं वह केवल आज मनोरंजन का माध्यम ही नहीं बल्कि कैसे आज विभिन्न पार्टिया इसका उपयोग अपना जन-आधार बनाने के लिए कर रही है। आज न्यू मीडिया का पावर किसी से छुपा नहीं है। इस पुस्तक में विभिन्न आलेखों के मध्य में केन्द्र सरकार के साथ-साथ विभिन्न राज्यों के सरकारों द्वारा कैसे चुनाव के दौरान न्यू-मीडिया का उपयोग किया गया इसके बारे डेटा के साथ रिसर्च करके बताया गया है। न्यू-मीडिया आज कैसे डेमोक्रेसी को प्रभावित कर रही है, कैसे उसे मजबूत बना रही और कैसे डेमोक्रेसी को भंग करने का कार्य कर रही है। इसको विभिन्न लेखों के माध्यम से बताया गया है। आज हम जाने-अंजाने न्यू-मीडिया में कुछ भी पोस्ट कर देते हैं, उसका फायदा कैसे विभिन्न राजनीतिक पार्टियां आपने फायदे के लिए करती है उसके बारे में इस पुस्तक में बताया गया है। मेरी जल्द ही एक दूसरी पुस्तक ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया प्रोडक्शन’ भी प्रकाशित होने वाली है जो पूरी तरह टीवी एवं फिल्म प्रोड्क्शन पर आधारित है।

क्या आपको लगता है कि मोबाइल प्रौद्योगिकी ने सांस्कृतिक मापदंडों और व्यक्तिगत व्यवहारों में भारी बदलाव किया है? जैसा कि आपने ‘इफेक्ट्स ऑफ मोबाइल फोन ऑन सोसाइटी’ पर एक पेपर प्रस्तुत किया है।

डॉ. संदीप– मैने अपना एक रिर्सच पेपर ‘इफेक्ट्स ऑफ मोबाइल फोन ऑन सोसाइटी’एक राष्ट्रीय सेमीनार में प्रस्तुत किया जिसका प्रकाशन मैनें बाद में एक रिसर्च जर्नल में भी करवाया था। मैंने अपने पेपर के माध्यम से यह बताया था कि कैसे आज मोबाईल केवल संचार का माध्यम न हो कर एक एडिक्शन बन गया है। एडिक्शन शब्द मैंने अपने पेपर के माध्यम से समझाया था कि एडिक्शन शब्द किसी के लिए तभी प्रयोग किया जाता है जब आप उसके बिना नहीं रह पाते हैं, उस चीज को पाने के लिए आप कुछ भी कर जाने को तैयार रहते हैं। आज मोबाईल ने यही काम किया है आप देख सकते हैं कि मोबाइल ने कैसे एक सोशल दूरी बना दी है। इसकी खोज तो सोशल दूरी को कम या खत्म करने के लिए हुई थी परन्तु आज इसका उल्टा हो रहा है। मोबाईल सोशल स्टेटस बन गया है। अगर अपके पास एक अच्छी कंपनी और मंहगी मोबाईल है तो आप को आपके आस पास वाले हाई स्टेटस वाला समझते है। आज हालत यह है कि सोने के पहले और जागने के साथ ही माबाईल देखना जरूरी है। अगर मोबाईल कही छूट जाती है तो आप बेचैन हो जाते हैं, खास कर आज कल के युवा पीढ़ी तो सबसे ज्यादा इसके एडिक्ट है। मोबाईन ने समाज के नियमों को भी बदल दिया है। आज एक परिवार में रहते हुए भी लोग एक दूसरे के साथ समय नहीं दे पाते है, ऐसे तो इसके कई कारण है परन्तु एक महत्वपूर्ण कारण मोबाईल भी है क्योंकि घर में रहते हुए भी हम एक दूसरे से बात करने के बजाए मोबाइल के माध्यम से सोशल मीडिया में खोए रहते हैं। आज के सूचना क्रांति के इस दौर में मोबाईल ने जहाँ एक ओर संचार को आसान बनाने का काम किया है तो दूसरी ओर इसने एक सामाजिक दूरी भी ला दी है।

‘चैलेंज ऑफ मीडिया रिसर्च’ पर आपकी एक पुस्तक के अध्याय के रूप में, तो क्या आप हमें बता सकते हैं कि मीडिया रिसर्च में मुख्य रूप से क्या चुनौतियाँ आती हैं?

डॉ. संदीप– दिल्ली से प्रकाशित एक पुस्तक ‘वैरियेशन डॉयमेशन एंड चैलेंजस ऑफ रिसर्च’  मेरा एक चैप्टर ‘चैलेंज ऑफ मीडिया रिसर्च’ के नाम से प्रकाशित हुई थी। इस चैप्टर में मैने मीडिया रिसर्च में आने वाले चैलेजों की बात की थी। जब आप मीडिया रिसर्च के क्षेत्र में नये होते हैं तो अनेको ऐसी परिस्थितियां आती है जहाँ आप कन्फ्यूज़ होते हैं कि अब क्या किया जाए। मै यहां ज्यादा विस्तार में तो नहीं जाउगां क्योंकि यह चैप्टर काफी बड़ा था इसलिए मै संक्षिप्त में ही कुछ चैलेजों पर चर्चा करना चाहुगां। मैने अपने इस चैप्टर में कुछ ऐसी ही परिस्थितियों की बात की थी जब एक नया मीडिया रिसर्चर पूरी तरह कन्फ्यूज होता है, ऐसी परिस्थितियों में सबसे पहले बात की थी-

1.सोशल रिसर्च एवं मीडिया रिसर्च में अंतर की- एक नये मीडिया रिसर्चर को सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि वह जो रिर्सच करने जा रहा है वह सोशल रिसर्च है या मीडिया रिसर्च। मैनें अपने इस चैप्टर में बताया था कि दोनों में ज्यादा अंतर नहीं। मीडिया रिसर्च सोशल रिसर्च का ही एक अंग होता है। सोशल रिसर्च में हम समाज की बात करते है, समाज के किसी समस्या की बात करते है, समाज में चली आ रही किसी रीति-रिवाज का वर्तमान में उपयोगिता की बात करते हैं लेकिन जब मीडिया रिसर्च की बात आती है तो हम मीडिया के प्रभाव और मीडिया के कारण जागरूकता की बात करते हैं। सामजिक शोध नागरिक या व्यक्ति केंद्रित होता है जबकि मीडिया शोध लक्षित जनसमूह केंद्रित होता है। सामाजिक शोध देखा जाए तो प्रायः मौलिक होता है जबकि मीडिया शोध व्यवहारिक एवं क्रियात्मक होते हैं।

2. शोध विषय का चयन- दूसरी सबसे बड़ी चैलेंज मीडिया रिसर्च में, शोध के विषय का चयन होता है। क्योंकि यह रिसर्चर को मुख्य रूप से दो कन्फ्यूज़न होते हैं। पहला मीडिया शोध का विषय कैसा होना चाहिए और दूसरा चैलेंज यह कि जो विषय मैंने लिया है वह शोध के योग्य है या नहीं। मीडिया शोध का विषय कैसा हो इसमें मैंने बताया था कि विषय ऐसा होना चाहिए जिसकी प्रासंगिकता हो मतलब आप चाहे किसी संस्थान के लिए रिसर्च कर रहे हो या किसी उपाधि के लिए विषय हमेशा प्रासंगिक ही लेनी चाहिए साथ विषय रिसर्चर के रूचि की होनी चाहिए ताकि रिसर्चर उस रिसर्च कार्य में अपना 100 प्रतिशत दे सके। विषय शोध के योग्य है या नहीं, इस चैलेंज के लिए मैंने बताया था कि विषय ऐसा होना चाहिए कि विषय से संबंधित डाटा मिल सके। क्योंकि आप का पूरा रिसर्च वर्क डाटा पर ही आधारित होता है।

3. सही शोध-क्षेत्र के चयन का चैलेंज – इसमें मैनें बताया था कि शोध क्षेत्र का चयन हमेशा ही रिसर्चर के लिए एक चैलेंज रहा है। शोध क्षेत्र कैसा होना चाहिए इसके लिए मैंने बताया था कि शोध क्षेत्र के चयन के सयम हमेशा अपने रिसर्च के उद्देश्य एवं परिकल्पना को ध्यान में रखना चाहिए। यह देखना चाहिए कि शोध का क्षेत्र ऐसा हो जहाँ पर हम अपने रिसर्च के उद्देश्यों एवं परिकल्पना को जांच सके। शोध क्षेत्र में जो सैम्पल हो उनका संबध अपने रिसर्च के उद्देश्यों से हो ताकि हम रिसर्च के विभिन्न मैथर्ड और टुल्स का प्रयोग उन पर कर सके।

4.प्रश्नावली का निर्माण का चैलेंज- प्रश्नावली का निर्माण कैसे किया जाए यह भी एक महत्वपूर्ण चैलेज होता है। इसके लिए मैंने बताया था कि प्रश्नावली का निर्माण करते समय रिसर्चर को हमेशा अपने रिसर्च के उद्देश्यों एवं परिकल्पना को दिमाग में रखना चाहिए। क्योंकि आप इन्ही प्रश्नावली से प्राप्त डाटा के आधार पर अपने परिकल्पना को जांचने वाले होते हैं। मैंने बताया था कि एक मीडिया रिसर्चर को हमेशा कोशिश यह करनी चाहिए कि वह मिक्स प्रश्नावली का प्रयोग करें ताकि उसे सुझाव देने में आसानी होगी।

5.डाटा टैबुलेसन एवं रिर्पोट राइटिंग का चैलेंज – एक मीडिया रिसर्च के सामने हमेशा यह चैलेंज रहता है कि वह प्राप्त डेटा का टैबुलेसन कैसे करें इसके लिए मैंने बताया था कि वह विभिन्न सॉफ्टवेयरों की मदद ले सकता है लेकिन टैबुलेसन के पहले उसे डेटा का एक मास्टर चार्ट बनाना होता है जिसकी मदद से वह आसानी से डाटा टैबुलेसन कर सकता है। रिर्पोट राइटिंग के लिए मैंने बताया कि अगर मीडिया इन्डस्ट्री के लिए रिसर्च कर रहे हैं तो इसकी रिर्पोट राइटिंग आलग होगी और अगर आप किसी एकेडेमिक संस्था के लिए रिसर्च कर रहे हैं तो उसकी रिर्पोट अलग तरीके से लिखी जाएगी।

इसके अलावे भी बहुत से चैलेंजों का सामना एक मीडिया रिसर्चर को अपने रिसर्च कार्य के आरंभ करने से पहले और फिर बाद में रिसर्च के दौरान करना पड़ता है। जिसका मैनें विस्तार से वर्णन अपने इस चैप्टर में किया है।

जैसा कि आप तकनीकी क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं, लेकिन आपने शिक्षाविदों के क्षेत्र को क्यों चुना है?

डॉ. संदीप– इस प्रश्न का जबाब में मैं यही कहुंगा कि मेरा आरंभ से ही एकेडेमिक के क्षेत्र में लगाव रहा। क्योंकि मेरे पिता जी भी एक शिक्षक रहे हैं। मैनें उनके अंदर ही 10वीं तक पढ़ाई की। मैं हमेशा यह देखा करता था की वे छात्रों को कैसे पढ़ाते थे और छात्र उनकी कितनी इज्जत करते थे। आज उनके पढ़ाये हुए छात्र विभिन्न क्षेत्रों में शीर्ष पदों पर हैं। आज भी वे छात्र उनकी उतनी ही इज्जत करते हैं। अपने समय मे उन्होंने बहुत से ऐसे छात्रों को फ्री में भी पढ़ाया जो फीस देने में समर्थ नहीं थे। ये सारी बाते मुझे हमेशा ही प्रेरित करती रही। हां, यह जरूर था कि मैं अपने आप को टेक्निकली से जोड़ा और कुछ सालों तक मैनें मीडिया इन्डस्ट्री में काम भी किया लेकिन मैंने हमेशा से ही एकेडेमिक को ही अपना लक्ष्य रखा। इसीलिए मैने मॉस कॉम में एम.ए, एम. फिल एवं पी.एचडी की। साथ ही बहुत सारे टीवी एवं फिल्म प्रोडक्शन में डिप्लोमा भी किया तथा अनेक संस्थाओं में इसकी ट्रेनिंग भी ली। लेकिन मैं इतन जरूर कहूगां कि मैं चाहे मीडिया इन्डस्ट्री में रहा या आज एकेडेमिक फिल्ड में हूं, हमेशा ही अपना 100 प्रतिशत दिया। क्योंकि अगर आप पूरे मन से काम नहीं करोगे तो आप कभी भी सफल नहीं होगें चाहे आप किसी भी फिल्ड में क्यों न हो।

जैसा कि आपके कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं, जो शोध के क्षेत्र में जाना चाहते हैं, उनके लिए एक अच्छा शोध पत्र बनाने के बारे में कुछ सुझाव व टिप्स दें।

देखिये ऐसा कोई खास टिप नहीं होता सब आपकी लगन पर निर्भर करता है। हां, इतना जरूर कहुगां कि अगर आप एक अच्छा रिसर्च पेपर तैयार करना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको ‘लिटरेचर ऑफ रिव्यू’ ज्यादा से ज्यादा करनी चाहिए। ताकि आपका कान्सेप्ट स्पष्ट हो जाए। दूसरी आपको ज्यादा से ज्यादा अच्छे रिसर्च पेपर पढ़नी चाहिए इसके लिए हमें इंटरनेट और रिसर्च जनर्ल की सहायता लेनी चाहिए। ऑनलाइन अनेक लाइब्रेरी उपलब्ध है जहां राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय लेवल के अच्छे पेपर उपलब्ध हैं। मीडिया रिसर्चर के लिए यह भी जरूरी है कि वह अपने आप को हर तरह से अपडेट रखे इसके लिए वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करें । इसके अलावा उसे डाटा या समाग्री चोरी से बचना चाहिए।

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